मुश्क़िलें ही मुश्क़िलें हैं, और कोई हल नहीं

मुश्क़िलें ही मुश्क़िलें हैं, और कोई हल नहीं अब कुएँ बस नाम के हैं, इन कुओं में जल नहीं   बाज़ ने चिड़िया की गर्दन थाम कर उससे कहा सभ्य लोगों की ये बस्ती है, येरा जंगल नहीं   तुम अगर भगवान हो तो फिर विवशता किसलिये मेरे जैसे रूप में आ, पत्थरों में ढल … Continue reading मुश्क़िलें ही मुश्क़िलें हैं, और कोई हल नहीं